मन में फिर फूल खिलने लगे है,
आशाओं के दीप फिर जलने लगें है ।
आसमान में पहले दिखती थी कालीमा,
अब रूपहले इन्द्र धनुष से बनने लगें है ।।
मुस्कान से भी पहले जो करते थे नफरत,
दिल खोलकर हँसने लगें है ।
कटे-कटे से रहना जिनकी थी आदत,
अब दौडकर गले मिलने लगें है ।।
सम्मेलन हमारे लिए लाया है ढेरों सौगातें,
स्वागत में पाँवडे बिछने लगें है ।
मजबुरी से लगते थे पहले सामाजिक रिशतें,
अब सुनहरे ख्वाब से लगने लगें है ।।
पूनमचंद गुप्ता (पट्टू)
शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010
सोमवार, 12 अप्रैल 2010
समाज का गौरव
डॉं राहुल गुप्ता स्वर्ण पदक प्राप्त करने के बाद |
डॉ. राहुल गुप्ता ने एमबीबीएस और ( एमएस ईएनटी सर्जरी ) बी.जे.मेडिकल कॉलेज, अहमदाबाद से किया जिसमें उन्होनें गुजरात विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक अर्जित किया है. फिर वह मई 2009 में ईएनटी में विशेषता के लिए डी एन बी की परीक्षा दी है. उत्कृष्टता के लिए अपनी खोज में, डॉ. राहुल गुप्ता को सर्वश्रेष्ठ सुविधाएं और ईएनटी बीमारियों में विशेषज्ञता के साथ लोगों की सेवा करना चाहते है. उसके माता पिता भी डॉक्टर है । पिता डॉं चन्द्रभान गुप्ता प्रभागीय चिकित्सा अधिकारी के रूप में I.R.M.S.Cadre, Govt. of INDIA at Western Railways, Ahmedabad. पदस्थ है. ।
डॉं राहुल गुप्ता अपने पिता डॉं चन्द्रभान गुप्ता एवं माता डॉं मीना गुप्ता के साथ |
बुधवार, 3 मार्च 2010
योगस्थ कुरू कर्माणि
योगस्थ कुरू कर्माणि
अर्थात् योग (समत्व) में स्थित होकर कार्य करो ।
सफल परारथ है जग माहिं, कर्महीन नर पावत नाहीं ।।
रामायण की अपरोक्त पंक्तियॉं हमें बताती है कि वह सब कुछ जिसकी हम इच्छा रखतें है, वह इस स्ष्टि में विधमान है पर उसके लिए हमें सही दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है, सही कार्य के लिए सही सोच की आवश्यकता है अर्थात हमारे विचारों को शक्तिशाली बनाना होगा क्योंकि ‘Basis of action is a thought’
और अपने विचारों को शक्तिशाली बनानें के लिए हमें शांत होना अनिवार्य है क्योंकि स्थिरता में ही अनन्त गतिशीलता निहित है । हम जानते है कि शरीर की धमनियों में रक्त दौड रहा है लेकिन धमनियॉ स्थिर है । मस्तिष्क में विचार आ जा रहे है लेकिन मस्तिष्क स्थिर है । धडी की सुईयॉं चल रही है लेकिन उसकी धुरी स्थिर है इससे यह बात तो स्पष्ट है कि गतिशीलता को स्थिरता का आधार चाहिए । स्थिर आधार के बिना गतिशीलता सम्भव नहीं है । जितनी मजबूत स्थिरता होगी, गतिशीलता उतनी ही अच्छी होगी और हमें मानसिक स्थिरता एंव शक्ति प्राप्त होगी ध्यान योग साधन के द्वारा ही ।
कहा भी गया है कि -
योग: कर्मयु कौशल (अर्थात् –योग हमारे कार्यो में कुशलता लाता है) ।
यो जागर तम् ऋच: कामयन्ते (जो जागृत है, उसके लिए ऋचाएं भी कामना करती है )।
हमारी उर्जा के ज्ञान का केन्द्र तो हम खुद ही है, हमारे अंदर उर्जा का असीमित भण्डार है जो हमें सभी कार्य को करने की प्रेरणा और शक्ति प्रदान करता है । आवश्यकता है उस असीमित परम सत्ता को अपने अंदर जागृत करने की जो योग द्वारा ही सम्भव है । और हमारे अंदर की असीमित संचित उर्जा को सही उपयोग करने की आवश्यकता है । हम अपनी उर्जा को कितना ज्यादा से ज्यादा सार्थक कार्यो में लगातें है । हम अपनी दैनिक कार्यो को कितनी पूर्णता के साथ करते है, यदि हम अपने कार्यो को अत्यंत कुशलता एवं सफलता के साथ सम्पन्न करते है तो यह तभी सम्भव है जब हम अनुशासन में रहें । पुराने लोगों को अनुशासन का ज्ञान था । वे अनुशासन, तप, योग, ध्यान के द्वारा अपनी चेतना को निर्मल करके सकारात्मक उर्जा संचित करते थे । हम अपने आप को स्व के अनुशासन में रखकर अपनी सकारात्मक उर्जा को जान सकते है ।
यदि हमें अपनी शारीरिक उर्जा का पूरा सउुपयोग करना है तो पुन: अपनी वैदिक विरासत को अपनाना होगा और इस कलुषित परिवेश तथा प्रदुषित वातावरण में योगिक प्रक्रियाओं के द्वारा अपने मनोविकारों को दूर करते हुए एक स्व अनुशासित जीवन अपनाना होगा ।
यह कार्य तभी सम्भव है जब हम ध्यान योग को अपने जीवन में शामिल करें एवं प्रतिदिन 20-30 मिनट अपने स्वंय के लिए दें और उपनी उर्जा को सकारात्म स्वरूप प्रदान कर एक सम्पूर्ण जीवन का आनंद ले सकतें है । हमारे शरीर के अंदर उर्जा का भंडार है । आपने प्रयासें के द्वारा हमें उस तक पहुँचाना है और अपने जीवन को सार्थक बनाना है ।
कर्म का विधान कहता है – योगस्थ कुरू कर्माणि । अर्थात योग में स्थित होकर कार्य करों, जिससे हमारे कार्य सफलतादायी, आनंददायी होगें और इस स्थिति में जो इच्छा करिंहों मनमाहीं, प्रभु प्रताप कछु दर्लभ नाहीं । अर्थात जो इच्छा करेगें ईशवर के आर्शीवाद से सब कुछ प्राप्त करेगें, कुछ भी कठिन नही होगा ।
साभार श्रीमती प्रभा नंदकिशोर गुप्ता, भिलाई
मंगलवार, 2 मार्च 2010
सफेद फिनायल
आवश्यक सामग्री – कटिंग आईल-500 मि.ली., पाईन आईल 500 मि.ली., एम.एल.सी. 200 ग्राम, पानी 20 लीटर, सेन्ट मनपसन्द जैसे- सेन्टोनीला, रोज, मोगरा आदि ।
उपकरण – 1 डण्डा, 1 प्लास्टिक की बाल्टी, हैण्ड ग्लोब्ज, नाप व बोतलें, प्लास्टिक का डब्बा ।
निर्माण विधि – सर्वप्रथम आप एक बाल्टी में 20 लीटर पानी लेंगें अब उसमें कटिंग आयल डालकर अच्छी तरह धीरे-धीरे हिलायेंगे । प्लास्टिक के डिब्बे में एम.एल.सी. लेकर उसमें पाईन आईल डालकर लकडी की सहायता से धोलेंगे । आपस में दोनों केमिकल अच्छी तरह से धुल जाये तो उसे कटिंग आयल व पानी के धोल में धीरे-धीरे डालते हुए लकडी की सहायता से हिलाते जायेंगे । जब वह आपस में अच्दी तरह मिल जाये तो उस धोल को डिब्बे से उठाकर ऊपर नीचे फेटेंगे । अब इसे एक रात कहीं सुरक्षित जगह में रहनें दें । दूसरे दिन उसमें मनचाहा सेन्ट डालकर यदि चाहें तो बोतलों में भर सकते है । यह फिनायल सफेद रंग का बना है । आप इसमें किसी भी प्रकार के धातु को स्पर्श न होने दे ध्यान रखें, नही तो इसका रंग पीला हो जाएगा ।
साभार श्रीमती प्रेमा गुप्ता, भिलाई
सोमवार, 1 मार्च 2010
वाशिंग पाऊडर
आज के समय में देखा जाए तो हर धर में जब तक परिवार का प्रत्येक सदस्य जरूरत के मुताबिक आय नही जुटा पाये तो परिवार की आर्थिक व्यवस्था चरमरा जाये । प्रत्येक धरो में वाशिंग पाऊडर, फिनायल, अगरबत्ती, मोमबत्ती, दियाबत्ती, नील, आदि कई प्रकार के वस्तुओं की रोज खपत होती है । इसी तारतम्य में हम आज आपको कुछ धरेलू वस्तुऍं बनाना बता रहे है :-
आवश्यक सामग्री – सोडा एश 1 किलोग्राम, नमक 200 ग्राम, यूरिया खाद 100 ग्राम, मैदा 50 ग्राम, डोलोमाईट पावडर (डी.एम.) 1 किलोग्राम, एसिड स्लरी 200 ग्राम, कलर 5 ग्राम, पानी 100 मि.ली., पैंकिग झिल्ली 100 ग्राम ।
उपकरण – बिछाने के लिए प्लास्टिक शीट, प्लास्टिक बाल्टी, लकडी का गोल डंडा व तराजू-बाट, आटा छानने की छलनी, स्टेपलर/मोमबत्ती ।
निमार्ण की विधि – प्लास्टिक की शीट को नीचे साफ कर अचछी तरह बिछा ले । अब आप नमक व डी.एम.पावडर को अच्छी तरह मिलाकर कुछ समय सुखने दे । अच्छी तरह सुख जाने के बाद उसमें मैदा मिलाकर फैला दे । कुछ देर बाद एक उिब्बे में पानी लेकर रंग व यूरिया डंडे की सहायता से धोलेंगें । एक व्यक्ति बाल्टी में स्लरी लेकर उसे डंडे की सहायता से चलाता जायेगा, दूसरा व्यक्ति डब्बे में धुले रंग, यूरिया वाला पानी, एक धार लगाकर स्लरी में डालता जायेगा । अच्छी तरह हिलाने पर यूरिया पानी रंग वस्लरी का धोल ग्रीस की तरह गाढा हो जायेगा । ध्यान रह यह धोल गर्म है इसे थोडा ठण्डा कर नमक, डी.एम.पावडर व मैदे के मिश्रण में फैलाकर डालेंगें और हाथ से धिसते जायेगें ताकि पूरा पावडर व स्लरी का धोल आपस में अच्छी तरह से मिल जाये दाने न रहे । अब उसे कुछ समय के लिए सूखने दे । यदि आप सुगंधित पावडर चाहते है तो बाजार में वाशिंग पावडर में डालने वाला सेन्ट भी मिलता है । जब पावडर अच्छी तरह सुख जावे तो उसे छानकर झिल्ली में तौल कर भरते जाये और स्टेपल/मोमबत्ती से पैक कर देवें । यह पावडर धडी डिटर्जेंट व निरमा पावडर के समकक्ष व गुणवता में खरा होगा ।
आगे अंक में फिनायल कैसे बनाए
गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010
चर्मरोग
कई बार त्वचा में कई प्रकार के चर्म रोग भी खूबसूरती में दाग के समान होते है ।
सफेद दाग
सोरिएसिस
मस्से
तिल
सनटैनिंग
कुछ लोगों के चेहर व शरीर के खुले भाग में धूप में धूमने के कारण शरीर का वह भाग काला हो जाता है । यह दवाइयों के द्वारा ठीक किया जा सकता है ।
एलर्जी
कई बार कुछ आर्टिफिशियल गहनों के उपयोग या सौंर्दय प्रसाधन से एलर्जी हो जाती है । कुछ लोगों में एलर्जी के कारण शरीर में लाल-लाल चकते निकल जाते है । जिन्हे अर्टीकेरिया कहते है ।
एक्जिमा
यह भी चमडी में होने वाली एक प्रकार की एलर्जी है ।इसमें चमडी मोटी हो जती है व उसमें खुजली होती है ।
छीला
यह शरीर में होने वाली विशेष प्रकार का फंगल इंफेकशन है जिसमें गर्दन, चेहरे व पीठ में हल्के पीले रंग के दाग हो जाते है ।
पसीने में बदबू
कुछ व्यक्तियों के पसीने में बदबू होती है । पेट साफ नही होने, लहसुन, प्याज के ज्यादा सेवन से भी पसीने में बदबू आती है । बगल के बाल साफ रखे, नियमित व्यायाम करे, पानी ज्यादा पीयें ।
फोडे व फुंसियॉं
यह छूत की बिमारी होती है साथ ही साथ ठीक होने पर त्वचा में दाग छोड जाती है ।
झॉंई
चेहरे में भूरे रंग का दाग हो जाता है यह खून व विटामिन की कमी, धूप के कारण व चेहरे में सुगंधित क्रीम के प्रयोग से होता है । कई बार माहवारी की अनियमितता व हार्मोन की गडबडी के कारण भी झॉंई होती है । इसका एक धरेलू उपचार भी है एक चम्मच मलाई में दो पत्ती केसर एक धंटे तक रहने दे, जब उसका रंग संतरे के रंग के समान हो जाए तो उसको झॉंई वाले भाग में लगा कर एक धंटे तक रहने दे फिर सादे पानी से धो लें ।
सफेद दाग
यह दूधिया सफेद रंग का दाग होता है । इसे ल्यूकोडर्म कहते है इसका इलाज काफी लंबा चलता है इसके इलाज के लिए अल्ट्रावायलेट लैम्प का इस्तेमाल करते है ।
सोरिएसिस
सामान्य भाषा में इसे अपरस कहते है इसमें शरीर के किसी भी भाग में चमडी छिलके के रूप में निकलती है इसका इलाज भी अल्ट्रावायलेट लैम्प के द्वारा होता है ।
मस्से
ये 8 से 10 प्रकार के होते है । इसमें कुछ छूत के भी होते है इसका इलाज केमिकल कान्ट्री इलेक्ट्रोकान्ट्री मशीन द्वारा व काय कान्ट्री और रेडियोंकान्ट्री द्वारा किया जाता है
तिल
यह मस्से से अलग होते है यह काले रंग के छोटे-छोटे दाने के समान होते है इसका इलाज रेडियोंकान्ट्री व कास्मेटिक सर्जरी द्वारा किया जाता है । रेडियो कान्ट्री एक ऐसी आधुनिक मशीन है जो तिल व मस्सों मोल व वाटरस को जड से मिटा देती है । को भी बिना किसी परेशानी के न बेहोशी न पटटी और न ही भर्ती होने का झंझट यहॉं तक की छोटे मस्सों में तो लोकल एनथिसियॉं की जरूरत भी नही पडती ।
सनटैनिंग
कुछ लोगों के चेहर व शरीर के खुले भाग में धूप में धूमने के कारण शरीर का वह भाग काला हो जाता है । यह दवाइयों के द्वारा ठीक किया जा सकता है ।
एलर्जी
कई बार कुछ आर्टिफिशियल गहनों के उपयोग या सौंर्दय प्रसाधन से एलर्जी हो जाती है । कुछ लोगों में एलर्जी के कारण शरीर में लाल-लाल चकते निकल जाते है । जिन्हे अर्टीकेरिया कहते है ।
एक्जिमा
यह भी चमडी में होने वाली एक प्रकार की एलर्जी है ।इसमें चमडी मोटी हो जती है व उसमें खुजली होती है ।
छीला
यह शरीर में होने वाली विशेष प्रकार का फंगल इंफेकशन है जिसमें गर्दन, चेहरे व पीठ में हल्के पीले रंग के दाग हो जाते है ।
पसीने में बदबू
कुछ व्यक्तियों के पसीने में बदबू होती है । पेट साफ नही होने, लहसुन, प्याज के ज्यादा सेवन से भी पसीने में बदबू आती है । बगल के बाल साफ रखे, नियमित व्यायाम करे, पानी ज्यादा पीयें ।
फोडे व फुंसियॉं
यह छूत की बिमारी होती है साथ ही साथ ठीक होने पर त्वचा में दाग छोड जाती है ।
झॉंई
चेहरे में भूरे रंग का दाग हो जाता है यह खून व विटामिन की कमी, धूप के कारण व चेहरे में सुगंधित क्रीम के प्रयोग से होता है । कई बार माहवारी की अनियमितता व हार्मोन की गडबडी के कारण भी झॉंई होती है । इसका एक धरेलू उपचार भी है एक चम्मच मलाई में दो पत्ती केसर एक धंटे तक रहने दे, जब उसका रंग संतरे के रंग के समान हो जाए तो उसको झॉंई वाले भाग में लगा कर एक धंटे तक रहने दे फिर सादे पानी से धो लें ।
मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010
सिर का ताज – काले धने व सुन्दर बाल
बाल हमारे सिर का ताज है । अगर अपने शरीर व चेहरे की सुन्दरता के अलावा अपने बालो पर भी ध्यान देगें तो लोग बरबस ही कह उठेंगें
चेहरा तेरा चॉंद, जुल्फे धटाओं वाली शाम ।
इतनी हसीन है तू, तुझको मेरा सलाम ।
बालों के पोषण के लिए आपके भोजन में प्रोटिन, विटामिन, कैल्शियम व आयरन जैसे तत्व हो । आप अपने भोजन में दूध, दही, मक्खन, पनीर, अंडा, गाजर, टमाटर, पालक, पत्ते वाली सब्जियॉं, नींबू, आंवला, अंगूर, सेब, संतरा आदि शामिल करें । तली व तेल-धी वाली वस्तुऍं कम खाऍं, सब्जियॉं व सलाद अधिक खाऍं, पानी दिन में 10-12 गिलास पियें, सुबह धूप में 10-15 मिनट बाल खोलकर खडे रहें ।
बालो की बिमारियॉं -
बालों का झडना व सफेद होना
1. चिंता, तनाव, अनिद्रा, भोजन में विटामिन की कमी ।
2. शरीर में खून की कमी (एनिमिया)
3. बिमारी व प्रसव के बाद की दुर्बलता
4. सर में रूसी का होना
5. बहुत ज्यादा कंधी करना
6. बालों का बार-बार व बहुत ज्यादा धना होना
7. शक्कर की बीमारी
8. थायराइड (गले की ग्रंथी)
9. दवाईयॉं – कैंसर की, बुखार की, हाथ-पैर दर्द तथा विटामिन-ए दवाई को अधिक मात्रा में लेने से भी बाल झडते है ।
कई पुरूषों को 20-25 साल की उम्र में माथे के बगल में सिप के बीच के बाल स्वंय ही झडने लगते है परन्तु यह हार्मोस के कारण होता है । कई बार सिर की चमडी में फंगल व बैक्टीरियल की बिमारी के कारण भी बाल झडते है ।
इलाज – निम्नलिखित बातों का सदैव ध्यान रखें -
विटामिन से भरपूर भोजन ले । विटामिन की गोलियॉं व प्रोटिन के पावडर के अलावा हेयर टिंचर व मिनाकसीडील नामक दवाईयॉं बालों को झडने से रोकती है । सात प्रकार के छिलके वाली दालों जैसे – चना, मूगफली, उडद, गेंहूँ, राहर, व मेथी का सेवन करें एवं अन्न पानी में भिगों दें व अंकुरित कर रोज एक कटोरी नाश्तें में ले । खाना खाने के बाद विशेषकर लडकियॉं व महिलाओं को एक टुकडा गुड चूसना चाहिए । इसमें बहुत आयरन होता है ।जो कि खून बनाने में मदद करता है । जिससे बाल ढडना कम हो जाते है । एक बार जो बाल सफेद हो जाते है व किसी भी दवाइयों से फिर काले नही होते । परन्तु अन्य काले बालों को सफेद होने से रोका जा सकता है । इसके अलावा आप प्रतिदिन 5 मिनट बालों की मालिश करे, 5 मिनट कंधी करे, 5 मिनट नाखूनों को आपस में धिसें और हफते में 1 दिन 5 मिनट बालों में भाप ले ।
रूसी व डैंड्रफ
ये बालों की ठीक से सफाई नही करने से होती है । इसके अलावा यह छूत की बीमारी भी है, व एक दूसरे के तौलिए, कंधी, रिबन आदि से भी फैलती है । इसलिए अपना सामान अलग रखना चाहिए । इसके लिए बार-बार कंधी करे, बालों में भाप ले, नींबू का रस या दो चम्मच दही को बालो में 15 मिनट तक लगे रहने दे फिर धो लें ।ऐसा हफते में 2 बार करने से कुछ ही दिनों में रूसी से निजात पा सकते है ।
सोमवार, 22 फ़रवरी 2010
स्वंय को बनाऍं खुबसूरत
हर व्यक्ति चाहता है कि वह दूसरे से अच्छा दिखे । किन्तु किसी न किसी परेशानी की वजह से वह पिछड जाता है 1 आए दिन देखने में आता है कि हमारे शरीर में छोटी-छोटी बीमारीयों की वजह से हम हताश हो जाते है । अब आपको निराश नही होना है हम आपकी इस परेशानीयों से निजात पाने के उपाय बताने जा रहे है :-
मुहॉसे क्या है
चमडी मे तेल बनाने की ग्रंथी होती है जिसके छिद्र चमडी के उपरी सतह में होते है । जब किन्ही कारणों से यह तेल छिद्र बंद हो जाते है तो त्वचा में छोटी-छोटी फुंसीयॉं हो जाती है जिसे मुहॉंसे कहते है । अंग्रजी में इन्हें (एवने या पिंपल) कहा जाता है ।
मुहॉंसों का उपचार
1. बिना दवाई के :-
अ. चेहरे को प्रतिदिन 4 से 5 बार साबुन से धोना चाहिए ।
आ. मुहॉंसे वाली जगह में महिने में 1-2 बार भाप केवल 1-2 मिनट के लिए लेना चाहिए ।
इ. खाने मे धी, तेल, तली हुई वस्तु व मीठा कम खाना चाहिए ।
ई. नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए, पेट साफ न होने से मुहॉंसे होते है ।
उ. सिर में रूसी रहती है और वह चेहरे पर गिरती है तो भी मुहॉंसे हाते है । इसलिए इनका ईलाज भी जरूरी है ।
ऊ. खाने व भोजन का समय निश्चित होना चाहिए ।ऋ. पानी अधिक मात्रा में पिये, हर एक धन्टे बाद एक गिलास पानी पिये, व सुबह उठकर एक सवा गिलास पानी पिये । इस प्रकार नियमित पानी पिते रहने से मुहॉंसे होने की संम्भावना कम हो जाती है ।
ऌ. मुहॉंसे के मरीज को फेशियल , ब्लीचिंग नही करनी चाहिए, फेश पेक भी नही लगाना चाहिए ।
2 दवाईयों द्वारा -
मुहॉंसों के लिए विभिन्न प्रकार के एंटीबायोटिक क्रीम, इरिथ्रोमाइसिन व क्लिंडामाइसिन, रेटिनोईक एसिड, बंजाइल परआक्साइड, की क्रीम आती है । खाने के लिए एंटीबायोटिक की कैपसूल, विटामीन ए व विटामीन सी की गोलियॉं दी जाती है ।
3. अन्य विधियों द्वारा –
अ- कृयोथेरेपी, ब- अल्ट्रावायलेट लैम्प, स – डर्मीजेट, द- एस्टी 7000 यूनिट ।
4. प्लास्टिक सर्जरी –
यह आपरेशन त्वचा में मुहॉंसों के दाग मिटान के लिए करते है । इसे तब करते है जब मुहॉंसे आने पूरी तरह बंद हो गए हो । यह डरमाइबरेशन व इन्ट्राडरमल टेफलान इंजेक्शन द्वारा करते है ।
5. केमिकल उपचार –
आजकल विशेष दवाईयों के द्वारा मुहॉंसों के दाग मिटाये जाते सकते है । इसमें काई नुकसान नही होता परन्तु समय 3 से 6 माह तक लगता है ।
6. माइक्रोडर्म एबरेटर –
यह मशीन मुहॉंसों के गडढों के अलावा चेचक या माता के दाग व झुर्रियों को मिटाकर चेहरे पर चमक लाती है ताकि आपसे कोई ये न कह सके कि आपने चेहरे पर जो मुहॉंसे के दाग है चॉंद तो आप ही, सितारे भी साथ है । इस इलाज से किसी भी प्रकार की तकलीफ नही होती । यह मशीन युवक-युवतियों में बहुत लोकप्रिय होती जा रही है ।
शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010
मानसिक स्वास्थ और हमारा सामाजिक दायित्व
आज संसार में लोग पंछियों की तरह उडना चाहते है और ग्रहों की तरह चलना चाहते है और इसी दौड में भारतीय संस्कृति की सबसे बडी शक्ति संयुक्त परिवार में विधटन जंगल में लगी आग की तरह फैल रही है जिसके कारण एकल परिवार की उत्पति और कुछ समय बाद सामजस्य की समस्या का बढते जाना 17 वर्ष के बच्चे से लेकर 50 वर्ष के वृद्ध, सामंजस्य को बनाए रखने की जद्दोजहद में शारिक व मानसिक दबाव में जीने को मजबूर है । वही व्यक्तिगत दबाव हमारे पारिवारिक व सामाजिक स्वास्थ पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है । अगर समाज में अपनी पॉंचों संवेदनाओं को देखें तो हम पाएंगे कि ऑंख का उपयोग हम अच्छे कार्यों को देखें जो सामाजिक स्वास्थ के लिए जरूरी है अर्थात उन सभी को प्रोत्साहित करे जो सामाजिक स्वास्थ के प्रति कार्य करता है क्योंकि सकारात्मक प्रोत्साहन द्वारा व्यक्ति के वांछित आवरण में सुधार तभी आता है जब वह कार्यावधि में दी जाए । प्रशंसा एक ऐसा सुधारात्मक आयुध है जिसकी वजह से मनुष्य ही नही पशु-पछी जैसे स्वच्छंद प्राणियों को भी सुगढ बनाकर उनसे काम लिया जा सकता है ।
ध्वनि के द्वारा हम या समाज उन चीजों को सुनें या सुनाए जो जमीनी स्तर पर हमारे संस्कारों से जुडे हों । रोजमर्रा के जीवन में हम ऐसे कई व्यक्ति देखतें है, न कोई उनकी मानता है, न कोई उसका सच्चा मित्र या शुभचिंतक वे जिससे भी बात करते है वो उनका शत्रु बन जाता है क्योंकि वार्तालाप करने का ढंग ऐसा होता है कि भुलकर कुछ ऐसी बात कर जाते है कि सामने वाले के अन्त:करण पर चोट कर जाती है ।
स्पर्श के द्वारा हम लोगों से ऐसे मिले तो हमारा व्यवहार देसरों के साथ ऐसा हो जिसमें लोगों को अपनापन व कोमल स्पर्श का अहसास हो ।
गंध के द्वारा हम ईर्ष्या, नशा से दूर है तभी हम व्यक्तिगत स्वास्थ के साथ-साथ पारिवारिक व सामाजिक स्वास्थ को प्राप्त कर सकेगें और यही मानसिक स्वास्थ का पर्याय है ।
गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010
मातृ कृपा
मॉ ममता महान हम जानी ।
सेवत सहि दु:ख शिशु आपुनो, कबहुँ नाहि उकतानी ।।
ऐसो प्रेम देत कौन भला, दीन्हों मॉं सहि हानी ।
कोई बडो न मातृ पूजा से, कह गए अस सब ज्ञानी ।।
मातृ ममत्व, सुत सुकृन्त ते, सदगुन सबही गानी ।
चन्द्रभानु एक सपूत ही, धर उजियारा लानी ।।
मॉं ममता महान हम जानी ......
सेवत सहि दु:ख शिशु आपुनो, कबहुँ नाहि उकतानी ।।
ऐसो प्रेम देत कौन भला, दीन्हों मॉं सहि हानी ।
कोई बडो न मातृ पूजा से, कह गए अस सब ज्ञानी ।।
मातृ ममत्व, सुत सुकृन्त ते, सदगुन सबही गानी ।
चन्द्रभानु एक सपूत ही, धर उजियारा लानी ।।
मॉं ममता महान हम जानी ......
सोमवार, 15 फ़रवरी 2010
लाल का कमाल
लाल ही लाल ये दुनिया, रे मूसक तु हि बता रे ।
कौन सा ठौर है ऐसौ, जहॉं नहिं लाल बसा रे ।।
फिरते मारे क्यों है ? बनती नहिं कोई बात ।
धन के पिछे भागे क्यों है ? सह के हर हालात ।।
कहीं किसी के साथ, जनम तक सात दिया रे ।
लाल ही लाल ये दुनिया, रे मूसक तु हिं बता रे ।।
प्यासी ऑंखे सबकी, दरस पाने को तेरे ।
आ कर नैनो मे वास, मिट जायें सभी अँधेरे ।।
तुम रहो दूर न लाल, करो सब माफ खता रे ।
लाल हि लाल ये दुनिया, रे मूसक तु हि बता रे ।।
लाली मेरे लाल की, जित देखूँ तित लाल ।
लाली देखन मैं चली, तो मै भी हो गई लाल ।।
लाल ही लाल ये दुनिया....
रविवार, 14 फ़रवरी 2010
भक्ति ज्ञान सरिता - 4
करहु कृपा करूणा के सागर ।
दीन दयाला दु:ख हर्ता, सफल गणों के आगर ।।
तुम अनाथ के नाथ, आपहि अब मोहि देऊ ।
बिन माझी नइया मोरी अटकी, रेत बीच कस खेऊ ।।
कृपा सिन्धु बाढहु जल लेकर, बिन जल नहि स्नेहू ।
चन्द्रभानु चालक जल पावें, दूसर कोई न गेहू ।।
धन्य भयो जीवन मेरो, तुम्हरे दर्शन पाकर ।
करहु कृपा करूणा के सागर ......
दीन दयाला दु:ख हर्ता, सफल गणों के आगर ।।
तुम अनाथ के नाथ, आपहि अब मोहि देऊ ।
बिन माझी नइया मोरी अटकी, रेत बीच कस खेऊ ।।
कृपा सिन्धु बाढहु जल लेकर, बिन जल नहि स्नेहू ।
चन्द्रभानु चालक जल पावें, दूसर कोई न गेहू ।।
धन्य भयो जीवन मेरो, तुम्हरे दर्शन पाकर ।
करहु कृपा करूणा के सागर ......
रविवार, 7 फ़रवरी 2010
रूद्राक्ष
रूद्राक्ष का जन्म त्रिपुर नाम के एक राक्षस ने ब्रम्हा, विष्णु और अन्य देवताओं को तिरस्कृत किया तो इन देवताओं ने भगवान शंकर से सबकी रक्षा करने को कहा । तब समाधिस्थ शंकर जी ने अपने नेत्र खोले । नेत्रों से जलबिन्दु गिरे और वहीं महारूद्राक्ष के वृक्ष के रूप में बदल गए । रूद्राक्ष चौदह प्रकार के है ।
एक मुखी रूद्राक्ष को जहॉं साक्षात शिव माना जाता है और बेहद कम मात्रा में मिलता है, वही दो मुखी रूद्राक्ष देवता और देवी का मिलाजुला रूप है । तीनमुखी रूद्राक्ष पहनने से स्त्री हत्या का पाप समाप्त हो जाता है,तो चार मुखी रूद्राक्ष पहनने से नर हत्या का पाप सामप्त हो जाता है । पंचमुखी रूद्राक्ष पहनने से अभक्ष्याभक्ष्य और अगम्यागमन के अपराध से मुक्ति मिलती है तो छ: मुखी रूद्राक्ष को साक्षात कार्तिकेय ही माना जाता है । सातमुखी रूद्राक्ष धारण करने से सोने की चोरी आदि के पाप से मुक्ति मिलती है और महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है ।
आठ मुखी रूद्राक्ष को गणेश जी माना जाता है । नौ मुखी रूद्राक्ष को भैरव कहा जाता है और गर्भ हत्या के दोषी लोगों को बायी भुजा में धारण करने से मुक्ति मिलती है । दशमुखी रूद्राक्ष को विष्णु जी माना जाता है । और ये धारण करने से भय समाप्त हो जाते है ।
ग्यारह मुखी रूद्राक्ष शिव का ही रूप है । बारह मुखी रूद्राक्ष धारण करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है और शासन करने का अवसर भी । तेरहमुखी रूद्राक्ष धारण करने वाले को समस्त भोग प्राप्त होते है । चौंदह मुखी रूद्राक्ष सिर पर धारण करने वाला साक्षात् शिव रूप हो जाता है ।
108, 50, 27 दाने की रूद्राक्ष माला धारण करने या जाप करने से बहुत पुण्य फल मिलता है । 108 रूद्राक्ष की माला धारण करने वाले अपने 21 पीढीयों का उद्धार करता है । जाबाल श्रुति के अनुसार रूद्राक्ष धारण करने से किया गया पाप नष्ट हो जाता है कहा जाता है यदि कुत्ता भी गले में रूद्राक्ष धारण कर प्राण त्यागत दे, तो मोक्ष को प्राप्त होता है ।
एक श्लोक के अनुसार – पुरूषों में विष्णु, ग्रहों में सूर्य, नदियों में गंगा, मुनियों में कश्यप, अश्वों में उच्चैश्रवा, देवताओं में भगवान शिव, देवियों में माता गौरी को सम्मान प्राप्त है, उसी तरह रूद्राक्ष भी श्रेष्ठता को प्राप्त है । आंवले के सामान रूद्राक्ष को उत्तम माना गया है । सफेद वर्ण के रूद्राक्ष ब्राम्हण, रक्त वर्ण के रूद्राक्ष को क्षत्रिय, पीत वर्ण के रूद्राक्ष को वैश्य और कृष्ण वर्ण के रूद्राक्ष को अन्य लोग धारण करें । रूद्राक्ष धारण करने वाले को मांसाहारी भोजन, लहसुन, प्याज तथा अन्य नशीले भेज्य पदार्थों का सेवन नही करना चाहिए । ग्रहण, मेष संक्राती, अमावस, पूर्णिमा और महाशिवरात्री को रूद्राक्ष धारण करना बेहद शुभ माना जाता है । जो रूद्राक्ष पानी में डूब जाए वो रूद्राक्ष असली होता है ।
शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010
इन्हे भी जाने....
- शून्य का अविष्कार भारत में ब्रह्मगुप्त ने किया ।
- अंकगणित का अविष्कार २०० ई. पूर्व भास्कराचार्य ने किया ।
- बीज गणित का अविष्कार भारत में आर्यभट्ट ने किया ।
- सर्वप्रथम ग्रहों की गणना आर्यभट्ट ने ४९९ ई. पूर्व में की ।
- भारतीयों को त्रिकोणमिति व रेखागणित का २,५०० ई.पूर्व से ज्ञान था ।
- समय और काल की गणना करने वाला विश्व का पहला कैलेन्डर भारत में लतादेव ने ५०५ ई. पूर्व सूर्य सिद्धान्त नामक अपनी पुस्तक में वर्णित किया ।
- ड्य न्यूटन से भी पहले गुरूत्वाकर्षण का सिद्धान्त भारत में भास्कराचार्य ने प्रतिपादित किया ।
- ३,००० ई. पूर्व लोहे के प्रयोग के प्रभाव वेदों में वर्षित है । अशोक स्तम्भ इसका स्पष्ट प्रमाण है ।
- लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्डस् के अनुसार ४०० ई. पूर्व सुश्रूत (भारतीय चिकित्सक) द्वारा सर्वप्रथम प्लास्टिक सर्जरी का प्रयोग किया गया ।
- विश्व का पहला विश्वविद्यालय तक्षशिला के रूप में ७०० ई. पूर्व भारत में स्थापित था जहाँ दुनिया भर के १०,५०० विद्यार्थी ६० विषयों का अध्ययन करते थे ।
- बारुद की खोज ८,००० ई. पूर्व सर्वप्रथम भारत में हुई ।
- सूर्य से पृथ्वी पर पहुंचने वाले प्रकाश की गति की गणना सर्वप्रथम भास्कराचार्य ने की ।
- यूरोपिय गणितज्ञों से पूर्व ही छठी शताब्दी में बोद्धायन ने पाई के मान की गणना की जो की पाइथोगोरस प्रमेय के रूप में जाना जाता है ।
- हमारा ज्ञान-विज्ञान एवं इतिहास इतना गौरवशाली एवं समृद्ध है । प्रत्येक भारतीय को इसकी जानकारी अवश्य होनी चाहिये।
गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010
कार्य सिद्धि के लिए करें देव परिक्रमा
मंदिरों में अकसर कई लोगों को परिक्रमा करते देखा जा सकता है । विभिन्न पर्वों पर महिलाऍं वट वृक्ष की परिक्रमा करती है । आइए जाने परिक्रमा करने का सही तरीका क्या है ।
अपनी-अपनी आस्था के अनुसार देव दर्शन प्रेरणास्पद और ऊर्जादायी है । मंदिर का वास्तु ही ऐसा होता है और अपनी समस्याओं के समाधान का मार्ग निकल जाता है ।
1. मंदिर में परिक्रमा को निर्धारित क्रम से ही करना चाहिए । विष्णु जी का मंदिर हो तो चार बार परिक्रमा करें और इस दौरान विष्णु मंत्र का ध्यान व उच्चारण करतें जाऍं । यह किसी संकल्प को पुष्ट करता है ।
2. शिव जी के मंदिर की आधी परिक्रमा करे और लौट जाऍं । इस दौरान शिव पंचाक्षर मंत्र का जाप करें । इससें मन में आने वाले बुरे ख्यालों, बुरे सपनों पर रोक लगती है ।
3. देवी के मंदिर की परिक्रमा करनी हो तो एक परिक्रमा ही करें और नर्वाण मंत्र का ध्यान करें । इससे अपने लक्ष्य और संकल्प को निश्चित ही बल मिलता है ।
4. यदि सूर्य के मंदिर की परिक्रमा पूरी करें और सूर्य मंत्र का ध्यान करें । इससे मन में आ रहे कलुषित विचारों पर अंकुश लगता है और सकारात्मक विचार भर जाते है ।
5. अपनी कामनाओं की सिद्धि के लिए गणेश मंदिर की परिक्रमा करें । गणेश जी की तीन परिक्रमा जरूरी हैं । इसमें गणेश जी के स्वरूप व मंत्र का ध्यान करें । कोई भी कार्य सिद्ध करना हो तो पहले परिक्रमा कर आऍं, तत्काल और कम प्रयास से ही सफलता मिलेगी ।
शंखनाद शुभ व अनिवार्य
अर्थवेद में शंख बजाने के बारे में निर्देश देते हुए कहा गया है कि शंख अंतरिक्ष, वायु, ज्योतिमंडल और सुचर्ण में संयुक्त होता है । शंखनाद से शत्रुओं का मनोबल कमजोर होता है । शंख विश्व रक्षक और रोग-शोक, अज्ञान और निर्धनता को मिटाकर आयु को बढाने वाला होता है । पूजा-अर्चना के समय जो शंखनाद करता है, उससे सभी पाप नष्ट हो जाते है । भारतीय वैज्ञानिक डॉं. जगदीश चंद्र बसु के शोध के मुताबिक एक बार शंख फूंकने से उसकी ध्वनि जहॉं तक जाती है वहॉं तक की अनेक बिमारियों के कीटाणु स्पंदन से मुर्च्छित हो जाते है । यदि प्रतिदिन शंखनाद किया जाए तो वायुमंडल कीटाणुओं से मुक्त हो सकता है ।
बुधवार, 3 फ़रवरी 2010
सूर्य नमस्कार क्यों..
शास्त्रों में प्रतिदिन प्रात:काल सूर्य नमस्कार करने की बात कही गई है । इस नियम के पीछे बहुत ही वैज्ञानिक कारण है । सूर्य की किरणों से हमें विटामिन डी प्राप्त होता है । हमारी त्वचा सूर्य की किरणों के साथ मिलकर विटामिन डी का निर्माण करती है । इसके अतिरिक्त इस विटामिन डी की आवश्यकता पूरी होती है और साथ ही शरीर का समुचित व्यायाम हमें बीमारीयों से दूर रखता है । हड्डियॉं मजबूत बनती है औंर जोडों के रोग नही होते है । सूर्य नमस्कार एक साथ विटामिन और शरीर के व्यायाम, दोनों ही बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करता है ।
बुधवार, 6 जनवरी 2010
भक्ति ज्ञान सरिता-3
कर ले जग रह सुन्दर काम ।
बुरा न कर काहू को, कर भल, हो भल नाम ।।
जग बन्धन तजि भज रधुन्दन, जय जय लोक ललाम ।
कोऊ न साथ देहँ तेरा, दूर ते कर परनाम ।।
सबहि लोग बस बात बनैहैं, आवे संकट धाम ।
सत साथी खोजब बहु दुर्लभ, यथा कृष्ण बलराम ।।
चन्द्रभानु, सो रहि अकेले, उजियर कर दिव याम ।
करले जग रह सुन्दर काम...
रचनाकार – डॉं चन्द्रभान गुप्ता
बुरा न कर काहू को, कर भल, हो भल नाम ।।
जग बन्धन तजि भज रधुन्दन, जय जय लोक ललाम ।
कोऊ न साथ देहँ तेरा, दूर ते कर परनाम ।।
सबहि लोग बस बात बनैहैं, आवे संकट धाम ।
सत साथी खोजब बहु दुर्लभ, यथा कृष्ण बलराम ।।
चन्द्रभानु, सो रहि अकेले, उजियर कर दिव याम ।
करले जग रह सुन्दर काम...
रचनाकार – डॉं चन्द्रभान गुप्ता
सदस्यता लें
संदेश (Atom)