रूद्राक्ष का जन्म त्रिपुर नाम के एक राक्षस ने ब्रम्हा, विष्णु और अन्य देवताओं को तिरस्कृत किया तो इन देवताओं ने भगवान शंकर से सबकी रक्षा करने को कहा । तब समाधिस्थ शंकर जी ने अपने नेत्र खोले । नेत्रों से जलबिन्दु गिरे और वहीं महारूद्राक्ष के वृक्ष के रूप में बदल गए । रूद्राक्ष चौदह प्रकार के है ।
एक मुखी रूद्राक्ष को जहॉं साक्षात शिव माना जाता है और बेहद कम मात्रा में मिलता है, वही दो मुखी रूद्राक्ष देवता और देवी का मिलाजुला रूप है । तीनमुखी रूद्राक्ष पहनने से स्त्री हत्या का पाप समाप्त हो जाता है,तो चार मुखी रूद्राक्ष पहनने से नर हत्या का पाप सामप्त हो जाता है । पंचमुखी रूद्राक्ष पहनने से अभक्ष्याभक्ष्य और अगम्यागमन के अपराध से मुक्ति मिलती है तो छ: मुखी रूद्राक्ष को साक्षात कार्तिकेय ही माना जाता है । सातमुखी रूद्राक्ष धारण करने से सोने की चोरी आदि के पाप से मुक्ति मिलती है और महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है ।
आठ मुखी रूद्राक्ष को गणेश जी माना जाता है । नौ मुखी रूद्राक्ष को भैरव कहा जाता है और गर्भ हत्या के दोषी लोगों को बायी भुजा में धारण करने से मुक्ति मिलती है । दशमुखी रूद्राक्ष को विष्णु जी माना जाता है । और ये धारण करने से भय समाप्त हो जाते है ।
ग्यारह मुखी रूद्राक्ष शिव का ही रूप है । बारह मुखी रूद्राक्ष धारण करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है और शासन करने का अवसर भी । तेरहमुखी रूद्राक्ष धारण करने वाले को समस्त भोग प्राप्त होते है । चौंदह मुखी रूद्राक्ष सिर पर धारण करने वाला साक्षात् शिव रूप हो जाता है ।
108, 50, 27 दाने की रूद्राक्ष माला धारण करने या जाप करने से बहुत पुण्य फल मिलता है । 108 रूद्राक्ष की माला धारण करने वाले अपने 21 पीढीयों का उद्धार करता है । जाबाल श्रुति के अनुसार रूद्राक्ष धारण करने से किया गया पाप नष्ट हो जाता है कहा जाता है यदि कुत्ता भी गले में रूद्राक्ष धारण कर प्राण त्यागत दे, तो मोक्ष को प्राप्त होता है ।
एक श्लोक के अनुसार – पुरूषों में विष्णु, ग्रहों में सूर्य, नदियों में गंगा, मुनियों में कश्यप, अश्वों में उच्चैश्रवा, देवताओं में भगवान शिव, देवियों में माता गौरी को सम्मान प्राप्त है, उसी तरह रूद्राक्ष भी श्रेष्ठता को प्राप्त है । आंवले के सामान रूद्राक्ष को उत्तम माना गया है । सफेद वर्ण के रूद्राक्ष ब्राम्हण, रक्त वर्ण के रूद्राक्ष को क्षत्रिय, पीत वर्ण के रूद्राक्ष को वैश्य और कृष्ण वर्ण के रूद्राक्ष को अन्य लोग धारण करें । रूद्राक्ष धारण करने वाले को मांसाहारी भोजन, लहसुन, प्याज तथा अन्य नशीले भेज्य पदार्थों का सेवन नही करना चाहिए । ग्रहण, मेष संक्राती, अमावस, पूर्णिमा और महाशिवरात्री को रूद्राक्ष धारण करना बेहद शुभ माना जाता है । जो रूद्राक्ष पानी में डूब जाए वो रूद्राक्ष असली होता है ।
ज्ञानवर्धक जानकारी
जवाब देंहटाएंरुद्राक्ष तो हर घर में मौजूद है ,बस ये देखना है की कितने मुखी है
rudraksh kee visheshtayen .... upyukt jaankari
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