आज संसार में लोग पंछियों की तरह उडना चाहते है और ग्रहों की तरह चलना चाहते है और इसी दौड में भारतीय संस्कृति की सबसे बडी शक्ति संयुक्त परिवार में विधटन जंगल में लगी आग की तरह फैल रही है जिसके कारण एकल परिवार की उत्पति और कुछ समय बाद सामजस्य की समस्या का बढते जाना 17 वर्ष के बच्चे से लेकर 50 वर्ष के वृद्ध, सामंजस्य को बनाए रखने की जद्दोजहद में शारिक व मानसिक दबाव में जीने को मजबूर है । वही व्यक्तिगत दबाव हमारे पारिवारिक व सामाजिक स्वास्थ पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है । अगर समाज में अपनी पॉंचों संवेदनाओं को देखें तो हम पाएंगे कि ऑंख का उपयोग हम अच्छे कार्यों को देखें जो सामाजिक स्वास्थ के लिए जरूरी है अर्थात उन सभी को प्रोत्साहित करे जो सामाजिक स्वास्थ के प्रति कार्य करता है क्योंकि सकारात्मक प्रोत्साहन द्वारा व्यक्ति के वांछित आवरण में सुधार तभी आता है जब वह कार्यावधि में दी जाए । प्रशंसा एक ऐसा सुधारात्मक आयुध है जिसकी वजह से मनुष्य ही नही पशु-पछी जैसे स्वच्छंद प्राणियों को भी सुगढ बनाकर उनसे काम लिया जा सकता है ।
ध्वनि के द्वारा हम या समाज उन चीजों को सुनें या सुनाए जो जमीनी स्तर पर हमारे संस्कारों से जुडे हों । रोजमर्रा के जीवन में हम ऐसे कई व्यक्ति देखतें है, न कोई उनकी मानता है, न कोई उसका सच्चा मित्र या शुभचिंतक वे जिससे भी बात करते है वो उनका शत्रु बन जाता है क्योंकि वार्तालाप करने का ढंग ऐसा होता है कि भुलकर कुछ ऐसी बात कर जाते है कि सामने वाले के अन्त:करण पर चोट कर जाती है ।
स्पर्श के द्वारा हम लोगों से ऐसे मिले तो हमारा व्यवहार देसरों के साथ ऐसा हो जिसमें लोगों को अपनापन व कोमल स्पर्श का अहसास हो ।
गंध के द्वारा हम ईर्ष्या, नशा से दूर है तभी हम व्यक्तिगत स्वास्थ के साथ-साथ पारिवारिक व सामाजिक स्वास्थ को प्राप्त कर सकेगें और यही मानसिक स्वास्थ का पर्याय है ।
main is aalekh se sahmat hun
जवाब देंहटाएंआज के युग में समाज के प्रति सोचने वाले व्यक्तियों की कमी है यह सोच समाज को एक नई दिशा देगा ।
जवाब देंहटाएं