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बुधवार, 3 मार्च 2010

योगस्थ कुरू कर्माणि

योगस्थ कुरू कर्माणि

अर्थात् योग (समत्व) में स्थित होकर कार्य करो ।
सफल परारथ है जग माहिं, कर्महीन नर पावत नाहीं ।।

रामायण की अपरोक्त पंक्तियॉं हमें बताती है कि वह सब कुछ जिसकी हम इच्छा रखतें है, वह इस स्ष्टि में विधमान है पर उसके लिए हमें सही दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है, सही कार्य के लिए सही सोच की आवश्यकता है अर्थात हमारे विचारों को शक्तिशाली बनाना होगा क्योंकि ‘Basis of action is a thought’

और अपने विचारों को शक्तिशाली बनानें के लिए हमें शांत होना अनिवार्य है क्योंकि स्थिरता में ही अनन्त गतिशीलता निहित है । हम जानते है कि शरीर की धमनियों में रक्त दौड रहा है लेकिन धमनियॉ स्थिर है । मस्तिष्क में विचार आ जा रहे है लेकिन मस्तिष्क स्थिर है । धडी की सुईयॉं चल रही है लेकिन उसकी धुरी स्थिर है इससे यह बात तो स्पष्ट है कि गतिशीलता को स्थिरता का आधार चाहिए । स्थिर आधार के बिना गतिशीलता सम्भव नहीं है । जितनी मजबूत स्थिरता होगी, गतिशीलता उतनी ही अच्छी होगी और हमें मानसिक स्थिरता एंव शक्ति प्राप्त होगी ध्यान योग साधन के द्वारा ही ।

कहा भी गया है कि - 
योग: कर्मयु कौशल (अर्थात् –योग हमारे कार्यो में कुशलता लाता है) ।
यो जागर तम् ऋच: कामयन्ते (जो जागृत है, उसके लिए ऋचाएं भी कामना करती है )।

हमारी उर्जा के ज्ञान का केन्द्र तो हम खुद ही है, हमारे अंदर उर्जा का असीमित भण्डार है जो हमें सभी कार्य को करने की प्रेरणा और शक्ति प्रदान करता है । आवश्यकता है उस असीमित परम सत्ता को अपने अंदर जागृत करने की जो योग द्वारा ही सम्भव है । और हमारे अंदर की असीमित संचित उर्जा को सही उपयोग करने की आवश्यकता है । हम अपनी उर्जा को कितना ज्यादा से ज्यादा सार्थक कार्यो में लगातें है । हम अपनी दैनिक कार्यो को कितनी पूर्णता के साथ करते है, यदि हम अपने कार्यो को अत्यंत कुशलता एवं सफलता के साथ सम्पन्न करते है तो यह तभी सम्भव है जब हम अनुशासन में रहें । पुराने लोगों को अनुशासन का ज्ञान था । वे अनुशासन, तप, योग, ध्यान के द्वारा अपनी चेतना को निर्मल करके सकारात्मक उर्जा संचित करते थे । हम अपने आप को स्व के अनुशासन में रखकर अपनी सकारात्मक उर्जा को जान सकते है ।

यदि हमें अपनी शारीरिक उर्जा का पूरा सउुपयोग करना है तो पुन: अपनी वैदिक विरासत को अपनाना होगा और इस कलुषित परिवेश तथा प्रदुषित वातावरण में योगिक प्रक्रियाओं के द्वारा अपने मनोविकारों को दूर करते हुए एक स्व अनुशासित जीवन अपनाना होगा ।

यह कार्य तभी सम्भव है जब हम ध्यान योग को अपने जीवन में शामिल करें एवं प्रतिदिन 20-30 मिनट अपने स्वंय के लिए दें और उपनी उर्जा को सकारात्म स्वरूप प्रदान कर एक सम्पूर्ण जीवन का आनंद ले सकतें है । हमारे शरीर के अंदर उर्जा का भंडार है । आपने प्रयासें के द्वारा हमें उस तक पहुँचाना है और अपने जीवन को सार्थक बनाना है ।

कर्म का विधान कहता है – योगस्थ कुरू कर्माणि । अर्थात योग में स्थित होकर कार्य करों, जिससे हमारे कार्य सफलतादायी, आनंददायी होगें और इस स्थिति में जो इच्छा करिंहों मनमाहीं, प्रभु प्रताप कछु दर्लभ नाहीं । अर्थात जो इच्छा करेगें ईशवर के आर्शीवाद से सब कुछ प्राप्त करेगें, कुछ भी कठिन नही होगा ।

साभार श्रीमती प्रभा नंदकिशोर गुप्‍ता, भिलाई

1 टिप्पणी:

  1. वाह गुप्ता जी-बहुत ही अच्छी ज्ञान वर्धक पोस्ट,
    योगस्चित्तवृत्तिनिरोध:-योग से मन की चपलता और
    चंचलता दुर होती है। स्थिर चित्त होकर कार्य करने से
    सफ़लता निश्चित है।---अशेष शुभकामनाएं।

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