मन में फिर फूल खिलने लगे है,
आशाओं के दीप फिर जलने लगें है ।
आसमान में पहले दिखती थी कालीमा,
अब रूपहले इन्द्र धनुष से बनने लगें है ।।
मुस्कान से भी पहले जो करते थे नफरत,
दिल खोलकर हँसने लगें है ।
कटे-कटे से रहना जिनकी थी आदत,
अब दौडकर गले मिलने लगें है ।।
सम्मेलन हमारे लिए लाया है ढेरों सौगातें,
स्वागत में पाँवडे बिछने लगें है ।
मजबुरी से लगते थे पहले सामाजिक रिशतें,
अब सुनहरे ख्वाब से लगने लगें है ।।
पूनमचंद गुप्ता (पट्टू)
इष्ट देव श्री बागेश्वर बाबा की स्थापना
10 वर्ष पहले